Saturday, 20 August 2011

मेरा, छूट गया गाँव

सुविधा के मोह में
बहक गए पाँव
मेरा, छूट गया गाँव

गोबर से लिपा पुता रहता था आँगन
खुशियाँ ही खुशियाँ तब लाता था सावन
जीवन अब अस्त-व्यस्त
सर पे नही छाँव

शहर सारा बेगाना, सर पे नही साया
सुख मे जो साथ रहा, दुख मे ना आया
ना ही बचा ठौर कोई
ना ही कोई ठाँव

रोजी के लाले हैं, पाँवों मे छाले
सुलझे से सुलझे ना, उलझन के जाले
जीवन मे लगने लगे
रोज़ नए दाँव.
 

सुविधा के मोह में
बहक गए पाँव
मेरा, छूट गया गाँव

No comments:

Post a Comment