Thursday, 28 July 2011

ये सफर , अच्छे से बेहतर की तलाश में


इंसानियत की ज़द में , उजालों की आस में
ये  सफर ,  अच्छे से बेहतर की तलाश में

किरदार  कैद  हैं  कई , पर्दों  के दरमियाँ
फ़न उनके फ़िर से लाएँ चलो हम उजास में

मिट्टी  के  घरौन्दे  हैं  महलों की ओट में
गिरवी हैं खुशियाँ सारी, महाजन के पास में

संजीदा  बहस  होगी, दिल्ली  में  भूख पर
मुद्दा ये ज़िक्र में  है,  हर आम-ओ-खास में

गुलशन की हवाओं मे ये ,कैसा ज़हर घुला
तितली भी  डर रही  है जाने को पास में

मुद्दत से मौन , ढूंढ रहा क्या है ये हुजूम
खुशियों की चाह है या सुकूं की तलाश में

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