Saturday 20 August 2011

मौन: सपने खुली आँखों के, सपने नहीं होते

मौन: सपने खुली आँखों के, सपने नहीं होते: सपने खुली आँखों के, सपने नहीं होते दिल जिनमे दरीचे न हो, अपने नहीं होते बचपन का मेरा ख्वाब कहीं, खो गया एसे कुछ सीपियों मे ज्यों कभ...

सपने खुली आँखों के, सपने नहीं होते


सपने  खुली  आँखों  के, सपने  नहीं होते
दिल जिनमे दरीचे न हो, अपने  नहीं होते

बचपन का मेरा ख्वाब कहीं, खो गया एसे
कुछ सीपियों मे ज्यों कभी मोती नहीं होते

खुशियों के कारोबार पे करता है जो यकीं
ये झूठ है कि ग़म उसे   सहने नहीं होते

हर शख़्स जहाँ भीड मे तन्हा सा रहता है
बेशक वो मकां होंगे   कभी घर नहीं होते

मुस्कान चलों बाँट दें कुछ इस जहाँ मे हम
सजदे को खुदा बुत  ही  ज़रूरी नहीं होते

मेरा, छूट गया गाँव

सुविधा के मोह में
बहक गए पाँव
मेरा, छूट गया गाँव

गोबर से लिपा पुता रहता था आँगन
खुशियाँ ही खुशियाँ तब लाता था सावन
जीवन अब अस्त-व्यस्त
सर पे नही छाँव

शहर सारा बेगाना, सर पे नही साया
सुख मे जो साथ रहा, दुख मे ना आया
ना ही बचा ठौर कोई
ना ही कोई ठाँव

रोजी के लाले हैं, पाँवों मे छाले
सुलझे से सुलझे ना, उलझन के जाले
जीवन मे लगने लगे
रोज़ नए दाँव.
 

सुविधा के मोह में
बहक गए पाँव
मेरा, छूट गया गाँव