सपने खुली आँखों के, सपने नहीं होते
दिल जिनमे दरीचे न हो, अपने नहीं होते
बचपन का मेरा ख्वाब कहीं, खो गया एसे
कुछ सीपियों मे ज्यों कभी मोती नहीं होते
खुशियों के कारोबार पे करता है जो यकीं
ये झूठ है कि ग़म उसे सहने नहीं होते
हर शख़्स जहाँ भीड मे तन्हा सा रहता है
बेशक वो मकां होंगे कभी घर नहीं होते
मुस्कान चलों बाँट दें कुछ इस जहाँ मे हम
सजदे को खुदा बुत ही ज़रूरी नहीं होते
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