क्या कहें क्या ना कहें
गीत बन ढलते रहें
श्रम से भीगी जो हो सांसे
वक़्त के हों उल्टे पांसे
मंज़िले कदमो मे होंगी
शर्त बस- चलते रहें.
राह जब दुश्वार होगी
जीत होगी हार होगी
जिस्म की इमारतों मे
ख़्वाब बस पलते रहें.
रिश्तों मे जो आवरण है
सांस की गर्मी से अपनी
मोम से गलते रहें.
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