Tuesday, 26 July 2011

तुम्हारी याद तो आई बहुत है.


तुम्हारी  याद तो आई बहुत है..............

जहाँ हर द्वार दरबानों के पहरे ,
चमकती गाडियां,बंगले सुनहरे,
वहाँ रिश्तों में  तनहाई बहुत है.
तुम्हारी  याद तो आई बहुत है.........
                       
नदी चुप है और सागर बोलते हैं,
सभी दौलत से सपनें तौलते हैं,
हाँ,मंजिल भी तमाशाई बहुत है
तुम्हारी  याद तो आई बहुत है.........

नकाबों से ढंके है सारे चेहरे
छुपा रक्खे हैं सबने राज गहरे,
है इंसा एक ,परछाई बहुत हैं.
तुम्हारी  याद तो आई बहुत है..........

 दिखाने के बचे सब रिश्ते -नाते,
 जुबां पर हो भले ही मीठी बातें ,
 यूँ, संबंधों में तो खाई बहुत है .
 तुम्हारी  याद तो आई बहुत है...........

जुबां है मौन ,मंज़र बोलते हैं,
यहाँ इमां ज़रा में डोलते हैं,
सच की राहों पे तो काई बहुत है.
तुम्हारी  याद तो आई बहुत है

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