बात महफ़िल मे वफा की जब उठी
तेरे बारे मे ही सोचा देर तक
वक़्त सूरज का ही हर रहता नही
दीप बन करना उजाला देर तक
गीत बन गुलशन मे तुम यूँ गूँजना
गुनगुनाएँ लोग जिसको देर तक
उस जगह तामीर हो तेरा मुकाम
दिख सकें एक दूसरे को देर तक
इक मुकम्मल गज़ल बन जाएँ चलो
याद रक्ख़ेगा ज़माना देर तक
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