सुविधा के मोह में
बहक गए पाँव
मेरा, छूट गया गाँव.......
गोबर से लिपा पुता रहता था आँगन
खुशियाँ ही खुशियाँ तब लाता था सावन
जीवन अब अस्त-व्यस्त
सर पे नही छाँव
सुविधा के मोह में.........................
शहर सारा बेगाना, सर पे नहीं साया
सुख मे जो साथ रहा, दुख में ना आया
ना ही बचा ठौर कोई
ना ही कोई ठाँव
सुविधा के मोह में.......................
रोजी के लाले हैं, पाँवों मे छाले
सुलझाए , सुलझे ना, उलझन के जाले
जीवन मे लगने लगे
रोज़ नए दाँव
सुविधा के मोह में..........................
Rohit very nice..
ReplyDeleteएक अच्छे गीत के लिए शुभकामनाएं.....साधुवाद
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