क्या कहें क्या ना कहें
गीत बन ढलते रहें
श्रम से भीगी जो हो सांसे ,
वक़्त खेले उल्टे पांसे
मंज़िलें कदमो में होंगी
शर्त बस - चलते रहें
क्या कहें क्या ना कहें.....
राह जब दुश्वार होगी
जीत होगी ,हार होगी
जिस्म की इमारतों मे
ख़्वाब बस, पलते रहें
क्या कहें क्या ना कहें.............
एक धुन्धली सी किरण है
रिश्तों मे जो आवरण है
सांस की गर्मी से अपनी
मोम से गलते रहें
क्या कहें क्या ना कहें.........
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