Tuesday, 26 July 2011

आज हमने फिर से पाई ज़िन्दगी


आज हमने फिर से पाई ज़िन्दगी
आज हमने फिर से उनसे बात की

खुल रही थी राज़ की परते जहाँ
था अन्धेरा, रोशनी की बात की

ज़ख़्म जो पावों को पत्थर ने दिए
उनसे फ़ूल और पत्तियों की बात की

हाथ मे जो लोग थे खंजर लिए
हमने उनसे आदमी की बात की

जो खडे  थे राह मे तन्हा कहीं
हमने उनसे हमसफ़र की बात की

टूटते चेहरों को फ़िर से जोडने
हमने उनसे ज़िन्दगी की बात की

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